
भारत में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा प्राप्त है। संविधान अपने जनता को वादा करता है कि देश का हर बच्चा अच्छी और सुलभ शिक्षा पाएगा, फिर भी कड़वी सच्चाई है कि आज शिक्षा व्यवस्था अभिभावकों की कमर तोड़ रही है।
शिक्षा या शोषण: क्या स्कूल कमाई का अड्डा हो गया है?
आज देश के सभी स्कूलों में एक समानता है – मनमानी फीस और अलग-अलग किताबों की अनिवार्यता। हर स्कूल अलग-अलग पब्लिकेशन से जुड़ा हुआ है। एक ही कक्षा की किताबें हर स्कूल में अलग हैं, मानो हर स्कूल अपना अलग सिलेबस चला रहा हो।
हर साल किताबें बदलती हैं, पब्लिशर बदलते हैं जिससे अभिभावकों की जेब ढीली होती है।

क्या है NCERT ?
इसको और अच्छे से समझने के लिए हमने भारत सरकार की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के कार्य को समझने की कोशिश की |
NCERT का मुख्य काम – राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रम तैयार करना, गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक सामग्री बनाना, और शिक्षा नीति के कार्यान्वयन करना।
तो फिर जब एक केंद्रीय संस्था यह कार्य कर रही है, तो क्यों स्कूल NCERT की किताबों को नहीं अपनाते?
क्यों एक देश में सैकड़ों पब्लिकेशन हाउस अलग-अलग किताबें बेचते हैं?

एक कक्षा, एक किताब: वक्त की मांग
जब “एक देश, एक चुनाव” जैसी नीति पर काम हो सकता है, तो क्यों न “एक कक्षा, एक किताब” की नीति पर भी काम किया जाए?
- समान पाठ्यक्रम: सभी स्कूलों में एक समान NCERT पाठ्यक्रम लागू हो।
- किफायती किताबें: सरकारी प्रकाशन सस्ती और गुणवत्तापूर्ण किताबें छापें, जिससे हर अभिभावक इन्हें खरीद सके।
- डिजिटल सामग्री: एक केंद्रीय पोर्टल पर सभी कक्षाओं की किताबें मुफ्त डाउनलोड के लिए उपलब्ध हों।
- निजी स्कूलों की निगरानी: निजी स्कूलों को यह निर्देश दिया जाए कि वे NCERT किताबें ही अनिवार्य रूप से प्रयोग करें।
- शिक्षा को व्यापार बनने से रोकें: शिक्षा को कमाई का जरिया नहीं, सेवा का माध्यम बनाया जाए।
- सरकार “एक कक्षा, एक किताब” की नीति लागू करे
- शिक्षा के बाजारीकरण को नियंत्रण करें
- स्कूलों की फीस और किताबों की बिक्री पर गहन निगरानी हो
शिक्षा बच्चों का अधिकार है, लेकिन आज ये एक महंगी सेवा बन चुकी है। अगर वाकई भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो इसकी बुनियाद यानी स्कूली शिक्षा को व्यवस्थित और सुलभ बनाना होगा।
“एक कक्षा, एक किताब” कड़ाई से लागू होनी चाहिए |
अब वक्त है बदलाव का – एक ऐसा बदलाव जो बच्चों के भविष्य को बोझ से नहीं, उजाले से भरे।
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