
भारत में सरकारी प्राथमिक विद्यालय शिक्षा का प्रमुख आधार हैं, जो गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में इन स्कूलों में छात्रों के नामांकन में चिंताजनक गिरावट देखी गई है, और उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे निचले पायदान पर है।
यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) 2023-24 की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में सरकारी स्कूलों में नामांकन में 5.59% की कमी आई है, और उत्तर प्रदेश में यह गिरावट सबसे अधिक, लगभग 21 लाख छात्रों की, दर्ज की गई है।

नामांकन में गिरावट: आंकड़े और तथ्य
UDISE+ 2023-24 की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में स्कूलों में कुल नामांकन लगभग 24.8 करोड़ है, जो पिछले वर्ष (25.17 करोड़) की तुलना में 37 लाख कम है। उत्तर प्रदेश में यह गिरावट विशेष रूप से गंभीर है, जहां प्राथमिक स्तर (कक्षा 1-5) पर नामांकन में 11.62% की कमी आई है, जो कुल गिरावट का लगभग 67% है। 2021-22 से 2023-24 तक, उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों में 1.4 करोड़ छात्रों की कमी दर्ज की गई। लड़कियों के नामांकन में 16 लाख और लड़कों में 21 लाख की गिरावट हुई है।
उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति और भी चिंताजनक है, क्योंकि यहां 27,764 स्कूलों को कम नामांकन के कारण पास के स्कूलों में विलय करने की योजना है। यह स्थिति शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के लक्ष्य – 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए सार्वभौमिक नामांकन – को कमजोर कर रही है।
नामांकन गिरावट के प्रमुख कारण
शिक्षकों की कमी:
उत्तर प्रदेश में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। X पर कई उपयोगकर्ताओं ने दावा किया है कि पिछले सात वर्षों से कोई नई शिक्षक भर्ती नहीं हुई है, जिसके कारण स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात (PTR) असंतुलित है। उदाहरण के लिए, झारखंड में PTR 35:1 है, और उत्तर प्रदेश में भी स्थिति समान है। UDISE+ डेटा के अनुसार, देश भर में 1,10,971 एकल-शिक्षक स्कूल हैं, जिनमें 39,94,097 छात्र पढ़ते हैं। उत्तर प्रदेश में कई स्कूलों में एकमात्र शिक्षक कई कक्षाओं को एक साथ पढ़ाने को मजबूर है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
शिक्षकों की कमी का एक अन्य पहलू प्रशिक्षण का अभाव है। ASER 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण और अनुपस्थिति शिक्षा की गुणवत्ता को कम कर रही है। एक शिक्षक के अनुसार, शिक्षकों को अब पढ़ाने के अलावा कई सारे कार्य करने होते हैं , कागजी काम बहुत होता है जिससे पढाई में बाधा उत्बपन्हुन होती है |
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं – जैसे पीने का पानी, शौचालय, पुस्तकालय, और खेल का मैदान – की कमी एक बड़ा मुद्दा है। ASER 2024 की मध्य प्रदेश पर आधारित रिपोर्ट में बताया गया कि 2018 से 2024 के बीच पीने के पानी और शौचालय जैसी सुविधाओं की गुणवत्ता में गिरावट आई है, जो नामांकन में कमी का कारण बन रही है। उत्तर प्रदेश में भी यही स्थिति है, जहां ग्रामीण स्कूलों में शौचालय और स्वच्छ पानी की कमी के कारण विशेष रूप से लड़कियों का नामांकन प्रभावित हो रहा है।
उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में लड़कियों के प्राथमिक स्कूल नामांकन में 2018 के 71% से 2024 में 70.7% की कमी देखी गई, और इसका एक कारण अपर्याप्त सुविधाएं हैं। उत्तर प्रदेश में भी ऐसी ही प्रवृत्ति देखी जा रही है, जहां अभिभावक निजी स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
शिक्षा की गुणवत्ता
शिक्षा की गुणवत्ता सरकारी स्कूलों में नामांकन गिरावट का सबसे बड़ा कारण है। ASER 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कक्षा 3 के केवल 6% बच्चे कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं। भागलपुर (बिहार) में तीसरी से पांचवीं कक्षा के 44.1% बच्चे केवल दूसरी कक्षा की किताब पढ़ पाते हैं, और उत्तर प्रदेश में भी स्थिति समान है।
बहु-ग्रेड शिक्षण, जहां एक शिक्षक कई कक्षाओं को एक साथ पढ़ाता है, ग्रामीण क्षेत्रों में आम है और इससे सीखने के परिणाम खराब होते हैं। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान सीखने की कमी ने स्थिति को और खराब किया, हालांकि नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत बुनियादी साक्षरता और अंकगणित पर ध्यान देने से कुछ सुधार देखा गया है।
निजी स्कूलों की ओर रुझान
अभिभावकों का निजी स्कूलों की ओर बढ़ता रुझान भी एक प्रमुख कारण है। UDISE+ डेटा के अनुसार, निजी स्कूलों में नामांकन में केवल 3.67% की कमी आई, जबकि सरकारी स्कूलों में यह 5.59% है। शिक्षाशास्त्रियों का मानना है कि निजी स्कूलों में बेहतर बुनियादी ढांचा और अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई अभिभावकों को आकर्षित कर रही है, भले ही उनकी फीस अधिक हो। उत्तर प्रदेश में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से मजबूत है, जहां मध्यम वर्ग निजी स्कूलों को प्राथमिकता दे रहा है।
आर्थिक और सामाजिक कारक
गरीबी और सामाजिक दबाव भी नामांकन में कमी के लिए जिम्मेदार हैं। X पर एक उपयोगकर्ता ने दावा किया कि गरीब परिवार अपने बच्चों को स्कूल में दाखिल नहीं करा पा रहे हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।
उत्तर प्रदेश की स्थिति: एक गहरा संकट
उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति कई मायनों में चिंताजनक है। 80.1% बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं, लेकिन ड्रॉपआउट दर और कम सीखने के स्तर ने अभिभावकों का विश्वास कम किया है। X पर कई उपयोगकर्ताओं ने योगी सरकार की शिक्षा नीतियों की आलोचना की है, जिसमें शिक्षक भर्ती की कमी और स्कूलों के विलय को प्रमुख मुद्दा बताया गया है।
स्रोत:
UDISE+ Report 2023-24
ASER 2024 Report
IndiaSpend, 30 जनवरी 2025
Navbharat Times, 2 जनवरी 2025
Aaj Tak, 2 जनवरी 2025
Great article 👍