
लखनऊ हाईकोर्ट ने सीतापुर के प्राइमरी स्कूलों के मर्जर पर रोक लगा दी है | लखनऊ हाईकोर्ट ने कहा कि अभी पुरानी स्थिति को बहाल रखा जाये | इस मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त जो होगी |
इस मामले की पहली सुनवाई एकल न्यायाधीश की पीठ ने 7 जुलाई को की थी, जिसमें ये याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं। अब मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की डिवीजन बेंच इन विशेष अपीलों पर फिर से विचार कर रही है |
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि जब बच्चे जाने को तैयार नहीं हैं, तो क्यों मर्जर किया जा रहा है ? कोर्ट ने जबाब मांगा कि ये दबाव क्यों बनाया जा रहा है ? आपके पास ना तो सर्वे रिपोर्ट है और ना ही कोई प्लान है, फिर ये किस आधार पर किया जा रहा है ?
क्या है पूरा मामला ?
सरकारी आदेश (16 जून, 2025): उत्तर प्रदेश सरकार ने उन प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों को “पेयर” करने का निर्णय लिया, जहाँ छात्रों की संख्या 50 से कम है। इन्हें पास के बड़े स्कूलों के साथ जोड़कर पढ़ाई की गुणवत्ता बेहतर करने और संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने की योजना बनाई गई | सोर्स: Times of India
सरकार का तर्क:
- सहायक छोटे स्कूलों को “बाल वाटिका/आंगनबाड़ी” में परिवर्तित करने की भी योजना है
- कम नामांकन वाले स्कूलों में शिक्षकों और सुविधाओं का फैलाव और व्यर्थ खर्च हो रहा था।
- छात्रों को बेहतर शिक्षण माहौल, डिजिटल सुविधाएं, खेल-कूद और विशिष्टीय शिक्षक मिलेंगे।
बच्चों और पेरेंट्स ने दाखिल की अपील
अपील करने वालों की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने जानकारी दी कि प्राथमिक विद्यालय के विलय के खिलाफ 3 विशेष अपीलें दायर की गयीं | इनमे एक अपील 5 बच्चों की ओर से जबकि दूसरी 17 बच्चों के पेरेंट्स की ओर से दायर की गयी हैं | इस अपीलों में 7 जुलाई को दिए गए फैसले को रद्द करने की माग की गयी है |
पहली अपील में अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्रा ने 17 बच्चों के पेरेंट्स की ओर से बहस में हिस्सा लिया | उसके बाद दूसरी अपील पर सुनवाई शुरू हुई | यह 5 बच्चों की ओर से दायर की गई थी | इसकी बहस में अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने भाग लिया | सभी अपीलों पर बहस के बाद डबल बेंच सरकार का पक्ष सुना |
क्या है बच्चों और पेरेंट्स की समस्या
1 जुलाई को सीतापुर की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत 51 बच्चों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी | एक अन्य याचिका 2 जुलाई को भी दाखिल की गई थी जिसमे याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि यह आदेश मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून (RTE Act) का उल्लंघन करता है |
नया स्कूल दूर हैं जहाँ छोटे बच्चों के लिए पहुंचना कठिन होगा | यह कदम बच्चों की पढ़ाई में बाधा डालेगा और इससे असमानता भी पैदा होगी |
सरकार का क्या तर्क है ?
उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि सभी छात्रों को बेहतर और सुविधापूर्वक शिक्षा देने के लिए यह कदम उठाए जा रहा है | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा के तहत बच्चों के बीच सहयोगऔर संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा देने की तैयारी है | जिससे सभी छात्रों को सुविधा के साथ बेहतर शिक्षा मिल सके |
सरकार की तैयारी क्या है ?
सभी जिलों में एक मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय कक्षा 1 से 8 तक खोला जा रहा है | उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इन स्कूलों को आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और शैक्षिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा | सभी स्कूल में कम से कम 450 छात्रों के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं | स्कूल बिल्डिंग को 1.42 करोड़ की लागत से अपग्रेड भी किया जा रहा है | स्कूलों में स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय कंप्यूटर रूम, सीसीटीवी, वाईफाई, जिम और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की जाएगी |
इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सभी जिलों में एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल कक्षा 1 से 12 तक की स्थापना की जा रही है | इस पर करीब 30 करोड रुपए की लागत का अनुमान है | इन स्कूलों में कम से कम 1500 छात्रों के लिए स्थापना की जाएगी |
लोगों का मानना है कि अगर सीतापुर जिले में मर्जर रद्द हुआ तो उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में फैसला रद्द हो सकेगा | अभी हाईकोर्ट का निर्णय आना बाकी है |