नोएडा, उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर जो आधुनिकता और तरक्की का प्रतीक माना जाता है, वहां हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। सेक्टर-55 में स्थित आनंद निकेतन वृद्ध सेवा आश्रम, जो बुजुर्गों को सहारा देने का दावा करता था, वहां की स्थिति नर्क से भी बदतर पाई गई। इस वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा था कि सुनकर किसी का भी दिल दहल जाए। रस्सियों से बंधे हाथ-पैर, तहखाने जैसे अंधेरे कमरों में कैद, मल-मूत्र से सने कपड़े और बिना कपड़ों के बुजुर्ग—यह सब उस जगह की सच्चाई थी, जहां माता-पिता को अपने बच्चों द्वारा छोड़ दिया गया था।
आनंद निकेतन वृद्ध आश्रम: एक भयावह खुलासा
27 जून 2025 को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, नोएडा पुलिस, समाज कल्याण विभाग और जिला प्रोबेशन विभाग की संयुक्त टीम ने आनंद निकेतन वृद्ध आश्रम पर छापेमारी की। यह कार्रवाई एक वायरल वीडियो के बाद शुरू हुई, जिसमें एक बुजुर्ग महिला को रस्सी से बंधा हुआ और कमरे में बंद दिखाया गया था। छापेमारी के दौरान जो दृश्य सामने आए, वे रोंगटे खड़े करने वाले थे।
- बुजुर्गों की दयनीय स्थिति: 39 से 42 बुजुर्गों को (विभिन्न स्रोतों में संख्या में थोड़ा अंतर हो सकता है) ऐसी स्थिति में पाया गया, जहां कई के पास कपड़े तक नहीं थे। कुछ बुजुर्ग महिलाओं के हाथ रस्सियों से बंधे थे, जबकि पुरुषों को तहखाने जैसे अंधेरे कमरों में ताले लगाकर रखा गया था। उनके कपड़े मल-मूत्र से सने हुए थे, जिसके कारण कई को गंभीर बीमारियां भी होने का दावा है |
- अवैध संचालन: प्राथमिक जाँच में पाया गया कि यह वृद्धाश्रम 1994 से बिना किसी वैध रजिस्ट्रेशन के चल रहा था। यह जन कल्याण ट्रस्ट द्वारा संचालित था, जिसे सरकारी अनुदान भी प्राप्त होता था। फिर भी, यहां कोई प्रशिक्षित स्टाफ या मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं।
- लूट की कहानी: आश्रम प्रबंधन हर बुजुर्ग से 2.5 लाख रुपये का डोनेशन और 6,000 से 12,000 रुपये मासिक शुल्क वसूलता था। इसके बावजूद, न तो साफ-सफाई थी, न ही चिकित्सा सुविधाएं और न ही उचित भोजन। एक महिला, जो खुद को नर्स बता रही थी, केवल 12वीं पास थी और उसे कोई मेडिकल प्रशिक्षण नहीं था।
कैसे सामने आया मामला ?
यह भयावह स्थिति तब उजागर हुई, जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में एक बुजुर्ग महिला को रस्सी से बंधा हुआ दिखाया गया था। यह वीडियो लखनऊ के समाज कल्याण विभाग तक पहुंचा, जिसके बाद राज्य महिला आयोग की सदस्य मीनाक्षी भराला ने तुरंत कार्रवाई की। उनकी अगुवाई में एक गोपनीय छापेमारी की गई, जिसमें आश्रम की अमानवीय स्थितियों का खुलासा हुआ।
मीनाक्षी भराला ने बताया कि कई बुजुर्गों ने शिकायत की कि विरोध करने पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था और उन्हें डराया-धमकाया जाता था। कुछ बुजुर्गों ने यह भी कहा कि उनके परिजनों को सब कुछ “ठीक” होने का भरोसा दिया गया था, जबकि हकीकत में उनकी जिंदगी नर्क से भी बदतर थी।
समाज पर सवाल उठाती यह घटना
यह मामला केवल एक वृद्धाश्रम की लापरवाही तक सीमित नहीं है। यह हमारे समाज की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करता है, जहां अपने माता-पिता को बोझ समझकर उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ दिया जाता है। खास बात यह है कि इस आश्रम में कई रईस परिवारों के माता-पिता थे, जिनके बच्चे मोटी रकम देकर अपने बुजुर्गों को “सुरक्षित” रखने का दावा करते थे। लेकिन क्या पैसा देकर जिम्मेदारी पूरी हो जाती है?
- परिजनों की उदासीनता: छापेमारी के बाद जब कुछ परिजनों से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इसे सामान्य बताया। यह दर्शाता है कि कई बार बच्चे अपने माता-पिता की स्थिति की अनदेखी करते हैं।
प्रशासन की कार्यवाही
छापेमारी के बाद तत्काल प्रभाव से आनंद निकेतन वृद्ध आश्रम को सील करने का आदेश दिया गया। 39-42 बुजुर्गों को रेस्क्यू कर दनकौर और अन्य सरकारी वृद्धाश्रमों में स्थानांतरित किया गया। तीन बुजुर्गों को तुरंत चिकित्सा के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। समाज कल्याण विभाग ने आश्रम के ट्रस्टी को नोटिस जारी कर पांच दिनों में जवाब मांगा है। साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले की गहन जांच के आदेश दिए हैं।
आश्रम प्रबंधन की सफाई
आश्रम प्रबंधन ने अपनी सफाई में कहा कि कुछ बुजुर्गों के हाथ इसलिए बांधे गए थे ताकि वे खुद को या दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं। हालांकि, जांच में यह दावा खोखला साबित हुआ, क्योंकि कोई भी प्रशिक्षित स्टाफ या चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
आनंद निकेतन वृद्ध आश्रम की यह घटना न केवल एक संस्थान की विफलता को दर्शाती है, बल्कि हमारे समाज की संवेदनहीनता को भी उजागर करती है। जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को पालने में जिंदगी खपा दी, उन्हें ऐसी यातनाएं सहनी पड़ रही हैं। यह समय है कि हम सब अपने बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें और ऐसी अमानवीयता को रोकने के लिए एकजुट हों।
क्या हम अपने बुजुर्गों को वह सम्मान और प्यार दे पा रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं? यह सवाल हर किसी को खुद से पूछना चाहिए।