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एक कक्षा, एक किताब: क्या है सरकार की पहल !

भारत की एक बड़ी आबादी का सबसे बड़ी चिंता अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा को लेकर है | आज की शिक्षा व्यवस्था ने अभिभावकों को बेबस कर दिया है | स्कूल की किताबों और मनमानी फीस ने कमाई का जरिया बना दिया है | अब सवाल यह है, क्या सरकार इस पर कोई कदम उठा रही है?

CBSE की नियमों को ढूंढने के बाद पता चला कि सीबीएसई ने अपने नियमों में कुछ बदलाव किये हैं जैसे:

पाठ्यपुस्तकों में समानता की ओर कदम

1. CBSE स्कूलों में NCERT किताबों का अनिवार्य उपयोग

2024 में CBSE ने अपने संबद्धता नियमों में संशोधन कर कक्षा 1 से 8 तक NCERT की किताबों और कक्षा 9 से 12 तक CBSE द्वारा प्रकाशित किताबों को अनिवार्य कर दिया है। स्कूलों को निर्देशित किया गया है कि वे अपनी वेबसाइट पर किताबों की सूची प्रकाशित करें।

2. डिजिटल रूप में मुफ्त NCERT किताबें

सरकार ने कक्षा 1 से 12 तक की NCERT किताबें हिंदी, अंग्रेज़ी और उर्दू में मुफ्त डाउनलोड के लिए NCERT की वेबसाइट पर उपलब्ध करवाई हैं।

3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020

NEP 2020 पाठ्यक्रम में एकरूपता, गुणवत्तापूर्ण सामग्री, और बच्चों में रचनात्मकता व सोचने की क्षमता विकसित करने पर ज़ोर देती है। यह नीति पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम की दिशा में एक अहम कदम है।

स्कूल फीस पर नियंत्रण के प्रयास

स्कूल फीस पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार अलग अलग कदम उठा रही है-

1. राज्य स्तर पर शुल्क नियंत्रण समितियाँ

कई राज्यों ने निजी स्कूलों की फीस तय करने के लिए समितियाँ बनाई हैं। जैसे कि कर्नाटक ने नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर जुर्माना और अभिभावकों को अतिरिक्त वसूली गई फीस की वापसी का प्रावधान किया है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018 लागू किया है। इस अधिनियम के तहत स्कूलों की फीस वृद्धि और अन्य शुल्कों पर नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं।

2. बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की गाइडलाइन

NCPCR ने निजी स्कूलों में फीस निर्धारण के लिए एक ढांचा प्रस्तुत किया है, जिसमें पारदर्शिता और जवाबदेही पर ज़ोर दिया गया है। किसी भी फीस वृद्धि से पहले स्कूलों को उसका उचित कारण और प्रस्ताव, संबंधित प्राधिकरण को देना होता है।

क्या हैं समस्याएं?

सरकार के नियमों में भिन्नता और सही ढंग से लागू ना होने के कारण इसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ता है, जबकि शिक्षा एक मूलभूत अधिकार है तथा किसी देश का भविष्य भी शिक्षा पर ही आधारित होता है | इसलिए सरकार को इस पर प्रमुखता से विचार करना चाहिए |

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