1975 का भारत एक बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रहा था। जेपी आंदोलन की आंधी, महंगाई, भ्रष्टाचार और युवाओं का आक्रोश — सबने सरकार को घेर लिया था। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया।
इंदिरा गांधी ने इसे व्यक्तिगत चुनौती मानते हुए 25 जून की रात को आपातकाल की घोषणा कर दी। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया।
क्या थी इंदिरा गांधी की मजबूरी?
कोर्ट का आदेश और कुर्सी पर संकट
- इंदिरा गांधी पर चुनावी भ्रष्टाचार के आरोप लगे।
- कोर्ट ने उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया।
देश में अस्थिरता और विरोध
- जेपी आंदोलन पूरे देश में तेज़ी से फैल चुका था।
- सरकारी मशीनरी फेल होती दिख रही थी।
- इंदिरा गांधी ने कहा कि देश को “shock treatment” की ज़रूरत है।
क्रांतिकारियों और पत्रकारों का दमन
हजारों गिरफ्तारियां
- 1 लाख से ज़्यादा लोग बिना मुकदमा जेल भेजे गए।
- जेपी नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता बंदी बनाए गए।
मीडिया पर सेंसरशिप
- अखबारों की खबरों पर सेंसर लगाया गया।
- पत्रकारों को डराया गया, कई समाचार पत्रों ने ब्लैंक पेज छापे।
इमरजेंसी: ज़रूरत थी या सत्ता की चाल?
पक्ष | तर्क |
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देशहित में | देश में कानून-व्यवस्था चरमरा गई थी, इमरजेंसी से स्थिरता लौटी। |
राजनीति बचाने | कोर्ट का आदेश और विरोधों के डर से सत्ता को बनाए रखने का प्रयास। |
आज की स्थिति: क्या यह एक अघोषित इमरजेंसी है?
आज विपक्ष के नेता संसद से लेकर सड़को पर आरोप लगा रहे हैं कि विपक्ष के नेताओं और जनता के आवाज को दबाया जा रहा है, मीडिया को नियंत्रित किया जा रहा है, विरोधी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है तथा नागरिको की स्वतंत्रता सीमित की जा रही है, तब सवाल उठता है —
क्या हम एक नई, अघोषित इमरजेंसी के दौर में हैं?
इमरजेंसी हमें सिखाती है कि
- लोकतंत्र की रक्षा केवल संविधान से नहीं, जागरूक नागरिकों से होती है।
- सत्ता जब डरने लगे, तो सवाल उठाना सबसे बड़ा कर्तव्य बन जाता है।
25 जून हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की रक्षा सतर्कता, संघर्ष और सत्य से ही संभव है।